Thursday, January 31, 2013

संघ आतंकवाद की फैक्ट्री या ..... ?


संघ आतंकवाद की फैक्ट्री या ..... ?

by Akhil Bharat Hindu Mahasabha on Friday, January 25, 2013 at 2:19am ·

Press :- Dt.25 Jan.2013


         हिन्दू महासभा नेताओ ने रा.स्व.संघ की स्थापना पारस्पारिक सहयोग के लिए की थी।सन १९३९ कोलकाता हिन्दू महासभा राष्ट्रिय अधिवेशन में डा.हेडगेवार राष्ट्रिय उपाध्यक्ष पद का चुनाव जीते।गुरु गोलवलकर महामंत्री पद का चुनाव हारे इसका ठीकरा उन्होंने सावरकरजी पर फोड़ा और हिन्दू महासभा का त्याग किया। डा हेडगेवार उन्हें संघ दायित्व देकर शांत कर रहे थे तो सावरकरजी ने संघ का हिन्दू महासभा में विलय कर हिन्दू मिलेशिया नया संघठन बनाने की सलाह दे रहे थे।संघ प्रवर्तक डा मुंजे जी ने भी इस बात का समर्थन किया परन्तु,बात नहीं बनी।डा हेडगेवारजी की अकस्मात मृत्यु के बाद पिंगले जी को सर संघ चालक बनना था परन्तु,गुरूजी ने सरसंघ चालक पद कब्ज़ा किया।सैनिकी शिक्षा विभाग के संचालक जोगदंड को पदच्युत किया।संघ ने सावरकर महिमा रोकने के लिए हिन्दू महासभा के विरुध्द शंखनाद किया।इसलिए रामसेना सं.डा.मुंजे-वर्मा (नागपुर), हिन्दुराष्ट्र सेना डा.परचुरे ग्वालियर ,हिन्दुराष्ट्र दल अमरवीर नथुराम गोडसे पुणे में वैकल्पिक संगठन बनाये गए।

         १९४६ असेम्बलि चुनाव में विघटनवादी मानसिकता ने हिन्दू महासभा को पराजित करने गुरु गोलवलकर के सावरकर विद्वेष का लाभ उठाया।विभाजन का विरोध कर रही हिन्दू महासभा को रोकने नेहरू ने अखंड हिन्दुस्थान का वचन देकर संघ का समर्थन प्राप्त किया।संघ सभा परस्पर सहयोगी थे,संघ के प्रत्याशियों को महासभा ने चुनावी मैदान में उतारा था।गुरूजी ने अंतिम समय कांग्रेस समर्थन की घोषणा करते हुए संघ समर्थको को नामांकन वापस लेने का दबाव बनाया। परिणामतः हिन्दू महासभा १६% मत लेकर पराभूत हुई तो कांग्रेस-मुस्लिम लीग विजयी।कांग्रेस को संघ समर्थन के कारण हिन्दुओ की प्रतिनिधि के रूप में विभाजन करार पर हस्ताक्षर के लिए आमंत्रित किया गया।फिर भी सावरकरजी ने कहा,'संसद में बहुमत से विभाजन रोका जाये !'

       विभाजनोत्तर शरणार्थी हिन्दुओ की घोर उपेक्षा हुई तो पाकिस्तान जा रहे लोगो को रोककर उनके मकान,तबेले में रह रहे शरणार्थी हिन्दुओ को भारी वर्षा और ठण्ड के बिच खुली सड़क पर निराश्रित किया गया।इससे क्रुध्द हिन्दू महासभा के पूर्व राष्ट्रिय महामंत्री अमरवीर पं नथुराम गोडसे जी ने कश्मीर आक्रमण के बाद भी पाकिस्तान और मुस्लिम परस्त मानसिकता के विरोध में गाँधी वध किया। संघ-सभा नेता धरे गए,अभियोग चले। १९४९ अयोध्या आन्दोलन में हिन्दू महासभा को मिली सफलता कुचलने का नेहरू ने भरसक प्रयास किया।यह सफलता राजनितिक जनाधार में न बदले इसलिए, नेहरू-पटेल ने गुरु गोलवलकर पर जिम्मेदारी सौपकर हिन्दू महासभा पक्ष ही तहसनहस कर दिया।उ.भा.संघ चालक बसंतराव ओक ने डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी को साथ लेकर हिन्दू महासभा में सेंध लगायी और भारतीय जनसंघ का निर्माण किया।हिंदुत्व की राजनीती पर यह भितराघात था।व्यक्ति वर्चस्व की राजनीती कहे या विद्वेष ने अखंड हिन्दुस्थान को विभाजन प्रदान किया,हिंदुत्व की राजनीती को च्छेद दिया।
       अखंड हिन्दुस्थान का विभाजन धार्मिक अल्पसंख्या के आधार और जनसंख्या के अनुपात में हुवा। पश्चात् २६ अक्तूबर १९४७ को ६६७ राष्ट्रिय मुसलमानों ने प्रधान मंत्री नेहरू से मिलकर पाकिस्तान समर्थक मुसलमानों को निष्कासित करने की मांग की थी,डॉक्टर आम्बेडकर जी ने लियाकत से समझौता कर जनसँख्या अदला बदली पर सहमती जताई थी।परन्तु,नेहरू ने उसे नकारा।खंडित देश में विभाजनोत्तर आश्रयार्थी मुसलमान धोखादायक बने है। क्यों कि,यह शिक्षा कुराण में ही अंतर्भूत है।विश्व इस्लाम का उद्देश्य है।एल जी वेल्स ने अपनी पुस्तक विश्व इतिहास की रुपरेखा में स्पष्ट लिखा है कि,"जब तक दिव्य ग्रन्थ रहेगा,तब तक अरब राष्ट्र विश्व के सभ्य राष्ट्रों के बिच बैठने के योग्य नहीं होंगे !"और इस कथन की पुष्टि भी मिल रही है जमात ए इस्लाम के संस्थापक मौ.मौदूदी अपनी पुस्तक हिन्दू वल्ड के पृ.24 पर लिखता है कि,"इस्लाम और राष्ट्रीयता की भावना और उद्देश्य एक दुसरे के विपरीत है।जहा राष्ट्रप्रेम की भावना होगी,वहा इस्लाम का विकास नहीं होगा।राष्ट्रीयता को नष्ट करना ही इस्लाम का उद्देश्य है। 
    खंडित हिंदुस्थान के आश्रयार्थी मुसलमानो के पूर्व निर्धारित अखंड पाक के  मनसुबे और अधिक दृढ हुए है।एक कसाब को फांसी देने से या किसी एक आतंकवादी संगठन पर प्रतिबन्ध डालने से कभी आतंकवाद समाप्त होनेवाला नहीं है।इस्लाम की स्थापना पूर्व की शोश्यल इंजीनियरिंग का अध्ययन करने से पता चलेगा कि,विश्व ख्रिश्च्यानिती के विरोध में संगठित हुए शिव लिंग पूजक कबायली काब्बा में श्रध्दा पूर्वक संगठित कैसे हुए।अलिफ़ लाम मीम जिसे हरूफ ए मुक्तआत कहा जाता है वह ॐ है और उसे परम दयालु मान्य किया गया है।

       परन्तु,इस्लाम के उत्तराधिकारियों ने ग्रन्थ में प्रचलित प्रथाओ को धर्मज्ञा समझकर तथा अपनी आवश्यकता (अरबी साम्राज्यवाद) के अनुसार कुछ वचनों (आयत) को अंतर्भूत किया।उनके अनुसार अरबी साम्राज्यवाद का आन्दोलन अब विश्व इस्लाम का स्वरुप ले चूका है। ९/११ अमेरिका पर हमले करनेवाले मुसलमानों की, तथा २६/११ के पश्चात् मुस्लिम ब्रदरहुड की योजना यह है की,देश तोडना,सरकार गिराना। अरबी-इस्लामी राष्ट्रों में हो रहे राजनितिक आन्दोलन और सत्तांतरण तथा हत्या उस ही का परिणाम है।पाकिस्तान हो या अफ़गानिस्तान पूर्व हिन्दू आपसी वर्चस्व में लड़ रहे है क्यों की उनपर इस्लामी धर्मशिक्षा का प्रभाव है। विभाजन के पश्चात् भी आश्रयार्थी मुसलमानों की अखंड पाकिस्तान की मानसिकता राजनितिक प्रश्रय से दृढ़ हुई है। हिन्दू जाती-पंथ-भाषा भेद में विघटित होकर आपस में लड़ रहे है।उसके लिए आरक्षण समस्या बनी है।
            लाहोर से प्रकाशित होनेवाला इस्लामी पत्र "लिजट" में अलिगढ यूनिवर्सिटी के प्रा.कमरुद्दीन खान का लिखा हुवा पत्र पुणे के 'मराठा' व देहली के 'ऑर्गनायझर' में २१ अगस्ट १९४७ को प्रकाशित हुवा था।उसमे विभाजनोत्तर खंडित हिंदुस्थान को हजम करने के लिए मुसलमानो की 'गिध्ददृष्टी' का खुलासा हुवा है।कमरुद्दीन लिखता है ,"५ करोड मुसलमानो को पाकिस्तान निर्मिती के बाद भी हिंदुस्थान में रहने के लिए विवश किया है .उन्हें अपनी आझादी की दुसरी लढाई लढनी होगी और जब यह दुसरा संघर्ष आरंभ होगा तब हिंदुस्थान के पूर्व और पश्चिम सीमा प्रांत में पाकिस्तान की भौगोलिक तथा राजनीतिक स्थिती हमारे भारी हित की होगी इसमें कोई संदेह नहीं. कि,इस उद्देश्य के लिए दुनिया के सभी मुसलमानो का सहकार्य हमें प्राप्त होगा." इस उद्देश्य की पुर्ती के लिए उसने ४ उपाय बताये थे।
     * १)हिंदूंओ की वर्ण व्यवस्था में कमी का लाभ उठाकर ५ करोड अछुतोंको हजम कर (धर्मांतरित कर) मुसलमानो की जनसंख्या बढ़ाना. (जो एक से अधिक विवाह, लव जिहाद,धर्मान्तरण,परिवार नियोजन का विरोध कर वृध्दि हो गयी है. विस्तार से निचे लिखा है.)   * २)हिंदू  प्रांत के राजनीतिक महत्व के स्थानोंपर लक्ष केंद्रित करना.उदाहरणार्थ संयुक्त प्रांत (उ.प्र.) में मुसलमानो को पश्चिम क्षेत्र (पश्चिमी उ.प्र.) अधिक संख्या में आकर मुस्लीम बहुल क्षेत्र बनाना.बिहार के मुसलमानोने पूर्णिया में संगठित रूप से बसना और पूर्व पाकिस्तान से जुड़ जाना. (१९४७ पूर्व से मुंबई प्रान्त को मुस्लिम बहुल बनाने का षड्यंत्र इसलिए हो रहा है की सिंध से जोड़ा जाये परन्तु,विभाजनोत्तर भी यह षड्यंत्र जारी होने के प्रमाण ११/८/२०१२ आझाद मैदान,मुंबई रझा अकादमी के दंगे से स्पष्ट हुवा है.) * ३)पाकिस्तान से निकटतम संपर्क बनाकर रखना और उनके निर्देशोंका पालन करना. (जो हर गाव-शहर-प्रान्त में बसे स्लीपर सेल कहे जाते है.)  * ४)अलिगढ युनिवर्सिटी जैसी मुस्लीम संस्थाओ को दुनियाभर के मुसलमानों के लिए केंद्र बनाना।
* दिनांक १८ ऑक्टोबर १९४७ के नव भारत में एक लेख प्रकाशित हुवा था.विभाजनोत्तर पाकिस्तान सरकार व उसके हस्तक खंडित हिंदुस्थान के लोकतंत्र को दुर्बल बनाकर छोटे छोटे असंख्य पाकिस्तान खड़े करने का षड्यंत्र कैसे किया जा रहा है उसपर प्रकाश डालकर निझाम ने छह सप्ताह में एक लक्ष मुसलमानो को पाकिस्तान से लाकर कैसे लाकर बसाया उसपर दृष्टीक्षेप डाला है।
* 'हिंदुस्थान हेरॉल्ड' नुसार निझाम ने २ लक्ष रुपये खर्च कर वहा के अछुतोंको धर्मांतरित करने  आंदोलन खड़े करने के लिए हिंदूंओ को भगाने का षड्यंत्र आरम्भ किया था,को उजागर किया।( इस वार्ता के पश्चात् डॉ.बाबासाहेब ने निझाम को धमकी देकर बलात धर्मांतरण ना करने का इशारा मक्रणपूर चालिसगाव की महार परिषद में दिया. आंबेडकर अनुयायी इराप्पा ने निझाम का वध करने का असफल प्रयत्न किया.)
 *श्री.शंकर शरण जी ने  दैनिक जागरण २३ फरवरी २००३ में लिखे लेख पर एक पत्रक हिंदू महासभा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय श्री.जगदीश प्रसाद गुप्ता,खुर्शेद बाग,विष्णु नगर,लक्ष्मणपुरी (लखनौ) ने प्रकाशित किया था। १८९१ ब्रिटीश हिंदुस्थान जनगणना आयुक्त ओ.डोनेल नुसार ६२० वर्ष में हिंदू जनसंख्या विश्व से नष्ट होगी. १९०९ में कर्नल यु.एन.मुखर्जी ने १८८१ से १९०१, ३ जनगणना नुसार ४२० वर्ष में हिंदू नष्ट होंगे ऐसा भविष्य व्यक्त किया था।१९९३ में  एन.भंडारे,एल.फर्नांडीस,एम.जैन ने ३१६ वर्ष में खंडित हिंदुस्थान में हिंदू अल्पसंख्यक होंगे ऐसा भविष्य बताया गया है।१९९५ रफिक झकेरिया ने अपनी पुस्तक द वाईडेनिंग डीवाईड में ३६५ वर्ष में हिंदू अल्पसंख्यांक होंगे ऐसा कहा है। परंतु,कुछ मुस्लीम नेताओ के कथाना नुसार १८ वर्ष में (अर्थात २००३+१८=२०२१ में ?) हिंदू (पूर्व अछूत-दलित-सिक्ख-जैन-बुध्द  भी)अल्प संख्यांक होंगे।अभी हिन्दुओ ने संविधानिक समान नागरिकता का स्वीकार कर विषमता नष्ट नहीं की तो आनेवाली पीढ़िया हमें कोसेंगी।

           यु.एस.न्यूज एंड वल्ड रिपोर्ट या अमेरिकन साप्ताहिक के संपादक मोर्टीमर बी.झुकर्मेन ने २६/११ मुंबई हमले के पश्चात् जॉर्डन के अम्मान में मुस्लीम ब्रदरहूड संगठन के कट्टरवादी ७ नेताओ की बैठक सम्पन्न होने तथा पत्रकार परिषद का वृतांत प्रकाशित किया था।ब्रिटीश व अमेरिकन पत्रकारो ने उनकी भेट की और आनेवाले दिनों में उनकी क्या योजना है ? जानने का प्रयास किया। 'उनका लक्ष केवल बॉम्ब विस्फोट तक सिमित नहीं है, उन्हें उस देश की सरकार गिराना , अस्थिरता-अराजकता पैदा करना प्रमुख लक्ष है।' झुकरमेन आगे लिखते है ,' अभी इस्त्रायल और फिलिस्तीनी युध्द्जन्य स्थिति है। कुछ वर्ष पूर्व मुस्लीम नेता फिलीस्तीन का समर्थन कर इस्त्रायल के विरुध्द आग उगलते थे।अब कहते है हमें केवल यहुदियोंसे लड़ना नहीं अपितु, दुनिया की वह सर्व भूमी स्पेन-हिन्दुस्थान समेत पुनः प्राप्त करनी है,जो कभी मुसलमानो के कब्जे में थी।' पत्रकारो ने पूछा कैसे ? ' धीरज रखिये हमारा निशाना चूंक न जाये ! हमें एकेक कदम आगे बढ़ाना है। हम उन सभी शक्तियोंसे लड़ने के लिए तयार है जो हमारे रस्ते में रोड़ा बने है !' ९/११ संदर्भ के प्रश्न को हसकर टाल दिया.परन्तु, 'बॉम्ब ब्लास्ट को सामान्य घटना कहते हुए इस्लामी बॉम्ब का  धमाका होगा तब दुनिया हमारी ताकद को पहचानेगी. ' कहा. झुकरमेन के अनुसार," २६/११ मुंबई हमले के पीछे ९/११ के ही सूत्रधार कार्यरत थे।चेहरे भले ही भिन्न होंगे परंतु, वह सभी उस शृंखला के एकेक मणी है।" इनको सरकार ने भी सेफ पैसेज दिया है।
         हिंदुस्थान सरकार तथा सभी दलोंको केवल मत पेटी की राजनीती छोड़कर राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टीसे देखकर पाकिस्तान देने के पश्चात् भी पीछे छूटे आश्रयार्थी राष्ट्रिय एकात्मता,संविधान तथा संविधानिक समान नागरिकता का विरोध करनेवाले राष्ट्रद्रोहियो की नागरिकता समाप्त करनी चाहिए। अराष्ट्रीय धर्मान्तरण,घुसपैठ,लव्ह जिहाद और जनसँख्या वृध्दि के कारण आतंरिक सुरक्षा के लिए मुसलमान विश्व में धोखादायक बने है। इसे आतंक कहा जाना चाहिए। ३१ जुलाई १९८६ मेट्रो पोलिटिन कोर्ट देहली ने विघातक मानी २४ आयत पर तत्काल प्रतिबन्ध लगाना चाहिए,सुरक्षा क्षेत्र में किसी भी मुस्लिम को प्रवेश वर्जित हो।ऐसे सुरक्षात्मक पग नहीं उठाये तो घर में बैठा आस्तीन के सांप को,राजाश्रय से अखंड पाक बनाने में समय नहीं लगेगा। विघटनवाद-विदेशी धार्मिक-आर्थिक आतंकवाद को कुचलने के लिए मुलायम नहीं कठोर निर्णय लेकर संविधान की राष्ट्रद्रोह की धारा १२४ ए को और अधिक कठोर बनाये तथा राष्ट्रीय धर्म संस्कृति और जनता की रक्षा करे।खंडित हिन्दुस्थान में निःशस्त्र-विघटित हिन्दुओ को स्वरक्षा के लिए प्रतिकार के कारण बलि का बकरा बनाकर हिन्दू आतंकवाद का रंग न दिया जाये।देखिये इस्लाम की शिक्षा क्या है ?
कुराण  की चौबीस आयतें और उन पर मेट्रो पोलीटिन कोर्ट, देहली का निर्णय 
श्री इन्द्रसेन शर्मा (तत्कालीन राष्ट्रिय उपाध्यक्ष अ.भा.हिन्दू महासभा ) और राजकुमार आर्य जी ने कुरान मजीद (अनु. मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ.प्र. १९६६) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छपवाया जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा १५३ए और २६५ए के अन्तर्गत (एफ.आई.आर. २३७/८३यू/एस, २३५ए, १ पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली) न्यायालयीन विवाद चलाया गया।पढ़े !
१ -“फिर, जब हराम के महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिको’ को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे ‘तौबा’ कर लें ‘नमाज’ कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।” (पा० १०, सूरा. ९, आयत ५,२ख पृ. ३६८)
२ - “हे ‘ईमान’ लाने वालो! ‘मुश्रिक’ (मूर्तिपूजक) नापाक हैं।” (१०.९.२८ पृ. ३७१)
३ - “निःसंदेह ‘काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।” (५.४.१०१. पृ. २३९)
४ - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों’ से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।” (११.९.१२३ पृ. ३९१)
५ - “जिन लोगों ने हमारी “आयतों” का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं” (५.४.५६ पृ. २३१)
६ - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ईमान की अपेक्षा ‘कुफ्र’ को पसन्द करें। और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे” (१०.९.२३ पृ. ३७०)
७ - “अल्लाह ‘काफिर’ लोगों को मार्ग नहीं दिखाता” (१०.९.३७ पृ. ३७४)
८ - “हे ‘ईमान’ लाने वालो! उन्हें (किताब वालों) और काफिरों को अपना मित्र बनाओ। अल्ला से डरते रहो यदि तुम ‘ईमान’ वाले हो।” (६.५.५७ पृ. २६८)
९ - “फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे।” (२२.३३.६१ पृ. ७५९)
१० - “(कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे ‘जहन्नम’ का ईधन हो। तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे।”
११ - “और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके ‘रब’ की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह उनसे मुँह फेर ले। निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है।” (२१.३२.२२ पृ. ७३६)
१२ - “अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ‘गनीमतों’ का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,” (२६.४८.२० पृ. ९४३)
१३ - “तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ” (१०.८.६९. पृ. ३५९)
१४ - “हे नबी! ‘काफिरों’ और ‘मुनाफिकों’ के साथ जिहाद करो, और उन पर सखती करो और उनका ठिकाना ‘जहन्नम’ है, और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे” (२८.६६.९. पृ. १०५५)
१५ - “तो अवश्य हम ‘कुफ्र’ करने वालों को यातना का मजा चखायेंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे।” (२४.४१.२७ पृ. ८६५)
१६ - “यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का (‘जहन्नम’ की) आग। इसी में उनका सदा का घर है, इसके बदले में कि हमारी ‘आयतों’ का इन्कार करते थे।” (२४.४१.२८ पृ. ८६५)
१७ - “निःसंदेह अल्लाह ने ‘ईमानवालों’ (मुसलमानों) से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए ‘जन्नत’ हैः वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं।” (११.९.१११ पृ. ३८८)
१८ - “अल्लाह ने इन ‘मुनाफिक’ (कपटाचारी) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और काफिरों से ‘जहन्नम’ की आग का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे। यही उन्हें बस है। अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके लिए स्थायी यातना है।” (१०.९.६८ पृ. ३७९)
१९ - “हे नबी! ‘ईमान वालों’ (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो। यदि तुम में बीस जमे रहने वाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ हो तो एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते।” (१०.८.६५ पृ. ३५८)
२० - “हे ‘ईमान’ लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ। ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा। निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता।” (६.५.५१ पृ. २६७)
२१ - “किताब वाले” जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर, न उसे ‘हराम’ करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन को अपना ‘दीन’ बनाते हैं उनकसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से ‘जिजया’ देने लगे।” (१०.९.२९. पृ. ३७२)
२२ - “…….फिर हमने उनके बीच कियामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं। (६.५.१४ पृ. २६०)
२३ - वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी ‘काफिर’ हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओः तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहाँ कहीं पाओं पकड़ों और उनका वध (कत्ल) करो। और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।” (५.४.८९ पृ. २३७)
२४ - उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा, और ‘ईमान’ वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा” (१०.९.१४. पृ. ३६९)
माननीय न्यायालय ने माना,"उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं।" मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने ३१ जुलाई १९८६ को फैसला सुनाते हुए लिखाः ”मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। मैं ए.पी.पी. की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आयतें २,५,९,११ और २२ कुरान में नहीं है या उन्हें विकृत करके प्रस्तुत किया गया है।” तथा उक्त दोनों महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि- “कुरान मजीद” की पवित्र पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने की सम्भावना है।”
                             (ह. जेड. एस. लोहाट, मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली ३१.७.१९८६)
इन आयातों को हटाये बिना मुस्लिम विश्व में और गैर मुस्लिम विश्व में भी शांति जिसे अमन कहते है,प्रस्थापित नहीं होगी।सभी धर्म-पंथ के धर्माचार्यो-सरकार को इस पर गंभीरता से अध्ययन करने की आवश्यकता है।संघ आतंकवादी है या हिन्दुघाती यह देश का हिन्दू तय करेगा। २६/११ हमले में मुस्लिम आतंकवाद-आक्रमण को प्रोत्साहन देनेवाले, श्री.नारायण राणे को न्यायालय में साक्ष देने को जाने से रोकते है।अगस्त में आझाद मैदान में हमले के आरोपियों को मुक्त करती है। यह सरकार आतंकवादियों को प्रोत्साहन देकर लक्षित सांप्रदायिक हिंसा कानून (विधि विधान ) लाकर हिन्दुओ को प्रतिकार से भी रोकना चाहती है ऐसी सरकार आतंकवाद को पोषित करती है और संघ को आतंकवाद की फैक्ट्री कहकर आनेवाले लोकसभा चुनाव के लिए समर्थन देने के लिए बाध्य करती है तो उसका परिणाम अखंड पाकिस्तान ही होगा। हिन्दू बंटा,देश टुटा !
जनता जनार्दन तय करे सर्व दलीय हिन्दू संसद एकमात्र विकल्प है !
संस्थापक-हिन्दू पार्लियामेंट्री बोर्ड,सेन्ट्रल हाल,हिन्दू महासभा भवन,मंदिर मार्ग,नई देहली-११० ००१

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