Tuesday, January 29, 2013

नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा

गाँधी-वध के मुकद्दमें के दौरान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति माँगी थी और उसे यह अनुमति मिली थी। नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया था। इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गाँधी-वध के सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई लड़ी और उसके फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबन्ध को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के प्रकाशन की अनुमति दी। नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के समक्ष गाँधी-वध के जो १५० कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा --

सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमे अहिंसा के सिधांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है .में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है .प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो एअसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना , में एक धार्मिक और नेतिक कर्तव्य मानता हु .मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे .या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये .वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे .महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे .गाँधी ने मुस्लिमो को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सोंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया .गाँधी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी .उसीने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया .मुस्लिम तुस्टीकरण की निति के कारन भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देशका एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई .नहरू तथा उनकी भीड़ की स्विकरती के साथ ही एक धर्म के आधार पर राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई सवंत्रता कहते है किसका बलिदान ? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया .में साहस पूर्वक कहता हु की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गय उन्होंने स्वय को पकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया . में कहता हु की मेरी गोलिया एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नित्तियो और कार्यो से करोडो हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला ऐसे कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इस्सलिये मेने इस घातक रस्ते का अनुसरण किया ..............म ें अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्या कन करेंगे जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीछे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विश्लन मत करना.


गांधी और मेरे जीवन के सिद्धांत एक है, हम दोनोँ ही इस देश के लिए जीये,गांधीजी ने उन सिद्धांतोँ पर चलकर अपने जीवन का रास्ता बनाया और मैने अपनी मौत का । गांधी वध के पश्चात मैँ समाधि मेँ हूँ और अनासक्त जीवन बिता रहा हूँ ।

मैँ मानता हूँ कि गांधीजी एक सोच है, एक संत है, एक मान्यता है और उन्होँने देश के लिए बहुत कष्ट उठाए । जिसके कारण मैँ उनकी सेवा के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हूँ, लेकिन इस देश के सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि के विभाजन का अधिकार नही था । किसी का वध करना हमारे धर्म मेँ पाप है, मै जानता हूँ कि इतिहास मेँ मुझे अपराधी समझा जायेगा लेकिन हिन्दुस्थान को संगठित करने के लिए गांधी वध आवश्यक था । मैँ किसी प्रकार की दया नही चाहता हँ । मैँ यह भी नही चाहता कि मेरी ओर से कोई और दया की याचना करेँ ।

यदि देशभक्ति पाप है तो मैँ स्वीकार करता हूँ कि यह पाप मैने किया है ।यदि पुण्य है तो उससे अत्पन्न पुण्य पर मेरा नम्र अधिकार है । मुझे विश्वास है कि मनुष्योँ के द्वारा स्थापित न्यायालय के ऊपर कोई न्यायालय हो तो उसमेँ मेरे काम को अपराध नही माना जायेगा । मैने देश और जाति की भलाई के लिए यह काम किया ! मैने उस व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीतियोँ के कारण हिन्दुओँ पर घोर संकट आये और हिन्दू नष्ट हुए !!
मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य ' नीति की दृष्टि ' से पूर्णतया उचित है । मुझे इस बात मेँ लेशमात्र भी सन्देह नही की भविष्य मेँ किसी समय सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेँगे तो वे मेरे कार्य को उचित आंकेगे ।



मोहनदास गांधीजी की हत्या करने के कारण नाथूराम गोडसेजी एवँ उनके मित्र नारायण आपटेजी को फाँसी की सजा सुनाई गई थी । न्यायालय मेँ जब गोडसे को फाँसी की सजा सुनाई गई तो पुरुषोँ के बाजू फडक रहे थे, और स्त्रियोँ की आँखोँ मेँ आँसू थे । नाथूराम गोडसे व नारायण आपटे को 15 नवम्बर 1949 को अम्बाला (हरियाणा) मेँ फासी दी गई । फाँसी दिये जाने से कुछ ही समय पहले नाथूराम गोडसे ने अपने भाई दत्तात्रेय को हिदायत देते हुए कहा था, कि
" मेरी अस्थियाँ पवित्र सिन्धू नदी मेँ ही उस समय प्रवाहित करना जब सिन्धू नदी एक स्वतन्त्र नदी के रुप मेँ भारत के झंडे तले बहने लगे, भले ही इसमेँ कितने भी वर्ष लग जायेँ, कितनी ही पीढियाँ जन्म लेँ, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करना ।"
श्रीनाथूराम गोडसे ने तो न्यायालय से भी अपनी अन्तिम इच्छा मेँ सिर्फ यही माँगा था - " हिन्दुस्थान की सभी नदियाँ अपवित्र हो चुकी है, अतः मेरी अस्थियोँ को पवित्र सिन्धू नदी मेँ प्रवाहित कराया जाए ।"
वीर नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे ने वन्दे मातरम् का उद्घोष करते हुये फाँसी के फंदे को अखण्ड भारत का स्वप्न देखते हुये चुमा और देश के लिए आत्म बलिदान दे दिया

नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे के अन्तिम संस्कार के बाद उनकी अंतिम इच्छा को पूर्ण करना तो दूर उनकी राख भी उनके परिवार वालोँ को नहीँ सौँपी गई थी । जेल अधिकारियोँ ने अस्थियोँ और राख से भरा मटका रेलवे पुल के ऊपर से घग्गर मेँ फेँक दिया था । दोपहर बाद मेँ उन्ही जेल कर्मचारियोँ मेँ से किसी ने बाजार मेँ जाकर यह बात एक दुकानदार को बताई, उस दुकानदार ने तत्काल यह सूचना स्थानीय हिन्दू महासभा कार्यकर्ता इन्द्रसेन शर्मा तक पहुँचाई ।इन्द्रसेन उस समय ' द ट्रिब्यून ' के कर्मचारी भी थे । इन्द्रसेन तत्काल अपने दो मित्रोँ को साथ लेकर दुकानदार द्वारा बताये गये स्थान पर पहुँचेँ । उन दिनोँ घग्गर नदी मेँ उस स्थान पर बहुत ही कम पानी था । उन्होँने वह मटका वहाँ से सुरक्षित निकालकर प्रोफेसर ओमप्रकाश कोहल को सौप दिया, जिन्होँने आगे उसे डाँ. एल वी परांजये को नाशिक मेँ ले जाकर सुपुर्द किया । उसके पश्चात वह अस्थिकलश 1965 मेँ नाथूराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल गोडसे तक पहुँचाया गया, जब वे जेल से रिहा हुए । वर्तमान मेँ यह अस्थिकलश पूना मेँ उनके निवास पर उनकी अंतिम इच्छा पूरी होने की प्रतिक्षा मेँ रखा हुआ है ।


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2 comments:

  1. गाँधी-वध के बाद क्या भारत मुस्लिम मुक्त देश बन पाया,क्या यँहा गौ हत्या बन्द हुआ ,आज कोई माई का लाल उन हिजडों (मुस्लिम सर्मथक राजनेता जो काम हर पार्टी कर रही है )का वध करने को तैयार नहीं ,क्या अब कोई नाथू राम गोडसे नही है।

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  2. बहुत अछा लिखा है आपने मैने पेस्ट किया है मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का के बारे में कहते हैं कि वह मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं। इसके बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’ में बहुत विस्तार से लिखा है।

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