Friday, January 25, 2013

ये कैसा गणतंत्र दिवस - भाग २


नई दिल्ली। सरकार के उदासीन रवैये के कारण
महाराष्ट्र राज्य के यावतमल जिले के करीब
165 सेवानिवृत्त विकलांग कर्मचारियों ने इस
गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति से
आत्महत्या करने की मंजूरी मांगी है। बेहद नाजुक
वित्तीय हालत में रह रहे इन विकलांग
लोगों को सरकार ने दो साल से पेंशन नहीं दी है।
इस कारण इन सभी ने राष्ट्रपति के नाम पत्र
तहसीलदार को सौंप दिया। इसमें उन्होंने
राष्ट्रपति से अपील करी कि अगर
उनकी समस्या नहीं सुलझाई जाती तो उन्हें 26
जनवरी को आत्महत्या करने की इजाजत दें। यह
पत्र सरकारी योजना के
लाभार्थियों द्वारा हस्ताक्षरित था। एक
लाभार्थी के मुताबिक ऐसी स्थिति में जीने से
कोई फायदा नहीं है। इससे सरकार हमें मरने
की ही इजाजत दे तो ठीक है।..


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कविता - 






कहर ढहते देखे
इस तूफानी दौर में
सभी चोर हैं
इस तूफानी दौर में
लहरों से आगे तो निकल गए हैं
पर खाईयों को दिखा कर डरा रहें
इस तूफानी दौर में |

इस तूफानी दौर में,
मन में छिपा है,
पढ़ा-लिखा सभ्यता का चोर
आसमां को छूने की तमन्ना में
जो कुतर रहा अपने ही घर का कोना-कोना
बूढी हो चुकी व्यवस्था के आईने को
दरारों के हाशिये पर जब भी देखती हूँ,
बस उसे, नम आँखों से ही ताकती हूँ
पीड़ा का घूँट पीकर
नए सृजन का सोचती हूँ
फिर भी, चारों ओर शोषण का जाल ही दिखता है,
चेतना आधारहीन है,
सबलता का कुछ अता पता नहीं,
बलात्कार का है बोलबाला,
हर तरफ मुनाफे की खुली है मधुशाला,
सता के नशे में चूर,
शोषण की चोट से बिलकता हर आम इंसान हैं
ऊपर से महंगाई की दोहरी मार है |

इस तूफानी दौर में
है चोरों ओर अँधेरे का राज
गाँव,शहरों,गलियों और चौराहों से
बिलख-बिलख कर निकलती है
अब हर किसी की आवाज़
कि, सभी नेता चोर हैं
धृतराष्ट बन धृत पीने लगे हैं
और सभी के चाल-चरित्र,चेहरे आतंकियों के
समान ही सजने लगे हैं
धोखा,साजिश और करोडों का घपला
अब इस देश का हाल
''अंधेर नगरी का चौपट राजा''जैसा है
जिसने आज़ादी को भी
अँधेरे में डाला है
गेहूँ,चावल,दालों की भूखे आदमी के अन्न को भी
खा रहें हैं,सरकारी सफेदपोश चूहे
सरकारी गोदामो में सब-कुछ सड़ाकर फेंक रहें हैं
समुन्दर में देश के दक्षिणी भागो में,
क़र्ज़ में डूबता किसान ,
फांसी पर भी लटकते-मरते देखे हैं |

इस तूफानी दौर में,
आज भी,सीमा पर जवान मारे जाते
यतीम होते बच्चे
विधवा होती भारत की बिटियाँ
सूनी होती माओं की गोदें
बूढ़े बाप ढोते हैं लाशें जवान फौजी बेटों की
और नेता आराम से भाषण बांचते, सोते फिरते हैं |
ये कैसी आज़ादी,कैसा ये गणतंत्रत है
हर बार की तरह
इस बार भी २६ जनवरी को
देश के राष्ट्रपति,इंडिया गेट पे सलामी लेंगे
दो शब्द सहानुभूति के बोलेंगे
कि हम ने इस देश के लिए,
क्या-क्या किया या कर रहें हैं
वो रटारटाया,कागज से देख-देख
भाषण तो दे देंगे,पर
उनके इतने वादों और इरादों के बाद भी
घोर निराशा के जंगल में इन नेताओं के भेष में
भ्रष्ट लुटेरे डाकू दिखते हैं
ये सभी वोटो के भिखारी
इस देश पर आज भी भारी हैं
क्यों फिर भी हम,
इतने सालों बाद भी
अपनी आज़ादी और गणतंत्र को
इस तरह मना रहें हैं?
जबकि आज तक भी,
हमारे देश को इन लुटेरों ने घेर हुआ है
क्यों,हर बार मेरा मन, मुझे से ये पूछे
उफ़,ये कैसा है गणतंत्र और कैसी है ये जश्न-ए-आज़ादी ?


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