Friday, December 21, 2012

एक अहसानफरामोश कौम


एक अहसानफरामोश कौम !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

एक कौम जो मिटटी का कर्ज चुकाना न जानती हो! एक कौम जो अपने ऊपर हुए उपकार का बदला उस पर उपकार करने वाले के घर को बर्बाद करके देती हो! एक कौम जो अपने ही निशां स्वं मिटाने में लगी हो! वो कोम जो देश के मालिको से देश को छिनने में लगी हो! एक कौम जो अहसानफरामोश हो उसका क्या?

 मेरे लिए मक्का और काबा उतने ही पवित्र है जितना की यरूशलम और वेटिकेन सिटी. मेरे लिए हर देश का स्वाभिमान और उसके नागरिक उतने ही पवित्र है जितना मैं खुद और मेरा अपना देश. परन्तु उस कौम का क्या जो मेरी ही थाली में खा खा कर उसमे छेंक करती हो!  क्या उस कौम का मैं आदर करू.!

ध्रुव सत्य है, की १९४७ का बटवारा इस बात पर ही हुआ था की हमे एक ऐसे काफ़िर के साथ नहीं रहेना जो हम से अलग है. जबकि सत्य यह है के आप उस घर में आक्रमणकारी बनकर, शरणार्थी बनकर आये थे आश्रय पाया या जबरदस्ती राज किया और फिर एक दिन आपने ही उनके साथ रहेने से इनकार कर दिया. उस देश के असली वारिसो की नसले बर्बाद की,  उसके घर को रक्तरंजित और खेत खलियान को लहू लूहान किया, 
उसके सभी पवित्र स्थानों (मंदिरों) को अपवित्र किया और अंत में उसी पर तोहमत मारते हुए एक बहुत ही उपजाऊ देश का हिस्सा धर्म के नाम पर मांग लिया. दे भी दिया गया ! उसने अपनी दोनों भुजाये काट कर धर्म की नफरत को रोकने की पूरी कोशिश करते हुए अपना गोश्त देकर आपकी यह मांग भी पूरी कर दी. जो देश बाँटने के बाद सीमा के उसपार नहीं जा सकते थे उनको इस भारत देश के वासियो ने आपको छोटा भाई और शरणार्थी मान कर सर आखों पर बैठाया और विशेष दर्जा भी दिया, अलाप्संख्यक का. हिन्दू अपनी माँ, बहिन की लुटी असिमिता को भी भूल गए, उसके वीर पुरखो, दसो गुरुओ के बलिदान को भी भूल गए. फिर भी इस देश में बचे इस असहानफरामोश कौम ने उसी के लहू से स्नान करना जारी रखा. वो जो लेलिया गया उसका तो जिक्र ही नहीं जो अभी है उसपर फिर से वोही धोंसपट्टी, मेरा लाल गोपाल अभी भी मस्जिदों में कैद है, राम लल्ला अभी भी पुलिस के सायें में है. बाबा विश्वनाथ अभी भी बंधक है. हर शहर और गाँव में अभी भी वो ही दुरभिसंधि जो आज से ६० साल पहेले थी. अभी भी उसकी गौ  माता का कलेजा चीर कर गोश्त को खाया और लहू को पीया जा रहा है. अभी भी हिन्दू लडकियों के साथ बलात्कार कर लव जिहाद किया जा रहा है. बाबा अमरनाथ पर जाना आज भी उतना ही कठिन जितना ६० साल पहेले जैसे औरंगजेब को जजिया दिया जाता है अब कश्मीर सकरार को. देश के हिन्दू को आज भी उतना अधिकार नहीं की वो अपनी माँ सरस्वती और दुर्गा के नंगे चित्रों पर विरोध दर्ज ही करा सके. आज भी गाजी और पीर पर ही अगरबत्ती जल रही है. आज भी मस्जिदों को ही संगरक्षण मिल रहा है.

आज आप धर्मनिरपेक्ष, मुसलमान और भारत सरकार हिन्दुओ के साथ न्याय करना चाहेंगी की नहीं? पकिस्तान और बंगलादेश से १९४७ में जो हिन्दू आया था वो अमूमन सक्षम था जिसका बंगलादेश और पकिस्तान के बड़े बड़े नगरो में बहुत ही अच्छा और बड़ा कारोबार था. जिसका नहीं था उसका तो वहीँ पर खतना कर दिया गया. और जो हिंदुस्तान आया उसने यहाँ आकर अपने दम पर हिंदुस्तान में अपना स्थान बनाया. परन्तु आपको फिर से इस देश ने बटवारा करने के इनाम के तौर पर अलाप्संख्यक का विशेष दर्जा दिया जो कालांतर में आपको सभी संसाधनों पर प्रथम स्थान पाने का हकदार बना गया. आज आपको हिन्दुस्तान में इतनी इज्जत और रुतबे के साथ रखा जा रहा है की पकिस्तान के मुसलमान के जीभ में पानी भर आता है और वो वहा से अपनी नौटंकी यहाँ आकर फिल्मो में, टीवी में और संगीत में पैसा कमा कमा कर जाते है. 
और आपने हिंदुस्तान के अपने शरण दाताओं को बदले में क्या दिया? 
यदि हिन्दुस्तान में एक भी इस कौम का सच्चा बच्चा है तो बताए की तुमने हिंदुस्तान के हिन्दुओ को क्या दिया ?
 ८०० साल तुमने उनकी असिमिता और भावनाओ से खेला, आज दो देश लेने के बाद भी बदले में उनको वापस क्या किया ?
इसको असाहन फरामोशी नहीं कहेंगे तो क्या कहंगे आप ? 


एक कुत्ता भी रोटी पाने पर अपने मालिक की वफादारी करती है. एक भैंस भी घास डालने पर दूध देती है. परन्तु एक यह कौम है जो दो दो देश लेने के बाद भी हमारे ही अन्न खाकर हमारे ही टुकडो पर पल कर हम ही से आजादी मांगती है. बड़ा ही क्षोभ होता है. सेना के जवानो को कश्मीर में पिटते मरते क्या एक भारतीय का खून न खौले? अरे तम्बुओ में रहे रहाए अपने घरो से हजारो किलोमीटर दूर अपने ही भूभाग पर 


"क्या चाहिए आजादी"


जैसे नारे सुनने पर क्या बीतती है एक हिन्दू मन पर! अरे मुसलमान होने के नाते तो ले ही चुके-
किताबे ले चुके, उनको जला चुके, मंदिर ले चुके, तबहा कर चुके, जमीं ले चुके, इज्जत ले चुके, आबरू ले चुके , मोहोल्ले ले लिए, माताए और बहिने छीन ली, रक्त पी चुके, दसो गुरु ले लिये, मुहं से निवाले ले लिये, अधिकार ले लिये, सत्ता ले ली और अब क्या ? 


परन्तु इतना लेने के बाद हमे क्या दिया तुमने ? 

१९४७ में निश्चय यह ही हो जाता की तुम सब को अफगानिस्तान में ही ठोक देते तो समझ भी कुछ आता. इस देश ने इतना कुछ दिया पर फिर भी मांग ही रहे हो. और आज आरक्षण भी मांग रहे हो. फिर से वोहीं नौटंकी जो बंटवारे से पहेले थी, मुस्लिम विश्विद्यालयो को अलप्संख्यक का दर्जा. भिखारी बनकर मांगते हो मिल जाने पर देश की इन्ही वासियो को काटते हो. क्या यह ही दस्तूर है दुनिया का ? और में बड़े दावे के साथ कहता हूँ की हम १०० करोड़ अपने शरीर पर आग लगा कर भस्म भी हो जाये तो तुम्हारा पेट नहीं भरेगा. परन्तु एक बात जो समझ नहीं आती की आपकी आत्मा नहीं कचोटती आपको की इस दाता हिन्दू कौम को भी कुछ वापस कर दे
क्या इस कौम की माँ भी अपने बच्चे को यह शिक्षा नहीं देती की जिस थाली में खा रहे हो उसमे नहीं थूकते.
क्या एक भी बाप ऐसा नहीं जा बचपन में अपने बच्चो को यह शिक्षा देता हो की इस राम और कृष्ण की भूमि पर शांति और यज्ञ का उपवन हिंदुस्तान इन हिन्दुओ का ही है.
क्या एक भी बेहेन बचपन में अपने भाई से खेल खेल  में नहीं कहती की भाई इतना सुन्दर देश तो फिर किस बात पर इनको (हिन्दुओ) हमारी नस्लों ने काफ़िर कहा और दो दो  देश छीन लिए. 
और अभी भी इस देश का आम नागरिक समानता की बात करता है. 
मित्रो वक्त की विडंबना नहीं तो क्या है की हम ८० करोड़ लोग ६० साल बाद भी समान नागरिकता की ही बात करते है अपने लिए कोई विशेष दर्जे की नहीं. जो स्वाभाविक है की किसी और को विशेष दर्जा मिल रहा है उसके बराबर आने ही तो आना चाहते है तभी तो हम ८० करोड़ हिन्दू सामान नागरिकता की बात करते है और अपने इस बचे - कुछे देश में अपने लिए ६० साल बाद भी सामान अवसर की सामान नागरिकता मांग रहे है. क्या एक बाप अपने बेटे से नहीं पूछता की इस कौम का, की जब ८० करोड़ लोग चीख चीख कर सामान नागरिक सहिंता की बात कर रहे है तो कहीं न कहीं हमे विशेष दर्जा (अलप्संख्यक का) दिया जा रहा है और हम इन ही की बहेनो की इज्जत और आबरू लूट रहे है. इन ही के मंदिरों पर आज भी कब्ज़ा नहीं छोड़ते, इन ही को आज भी काफ़िर और कश्मीर में इंडियन डोग केहेंते है. 
क्यों देश के २० करोड़ मुस्लमान एक साथ खड़े होकर कश्मीर कूच नहीं कर सकते और इन कश्मीरी मुसलमानों को ही सबक सीखा  देते की बहुत हो चूका. हम भी इसी धरती के बेटे है. कश्मीरी मुस्लमान आजादी मांग रहे है धर्म के आधार पर, वो कोई कश्मीरी पंडित दिल्ली के टेंट से कुछ नहीं मांग रहे है, कश्मीर की सत्ता पर काबिज होकर अलग देश मांग रहे है. क्योँ उन कश्मीरियो के ऊपर लघुशंका करदेते जो हिंदुस्तान से अलग होने की मांग करता है. 
क्यूँ नहीं मोर्चा खोल देते भारत माता को डायान बता ने वालो पर. 
क्या उर्दू या अरबी में एक भी लाइन नहीं अपने देश की भक्ति पर.
क्या एक भी शिक्षा नहीं पूरी नसल के पास जो असहान करने वालो के प्रति किया जाता हो.
क्या एक भी इस कौम की माँ अपने बच्चे को रात को कहानी नहीं सुनाती जिसे सुनकर उसकी भुजाये फड़कती हो.
क्या एक भी माँ इनको यह नहीं बताती की इतना खाने के बाद कुछ चुकाना भी फर्ज होता है.
इस देश का पानी पीते हो अन्न खाते हो और उस देश के वारिसो से इतना अलगाव रखते हो. क्यूँ ?
हद होगई जिस कौम के खून का एक एक कतरा हिन्दुओ के अहसान के तले दबा हो. हज का पैसा भी हिन्दुओ से लेकर हज की जाती हो. मदरसे हिन्दू पैसे से चलते हो. उस हिन्दू को ६० साल पहेले आपकी कौम के लोग काफ़िर बता कर अपने अपने देश तोड़ कर लेगाए हों. अब जो बचे है वो भी उसके बाशिंदों को इज्जत नहीं बक्शना चाहते हो. धर्म और पूजा तो दूर की बात है जब तक एक शबरी का भी असहान था प्रभु श्री राम पर तो वो उसको भी चूका कर गये. अरे हिंदुस्तान उस देश की मिटटी है जहाँ पर प्रभु श्री कृष्ण सुदामा के चार दाने चने का भी अहसान चूका कर गये. तो उस मिटटी से उपजे अन्न का कुछ तो मान करो और बस बहुत हो चूका अब कम से कम आह्सान ही चूका दो. नहीं हम तो इतने बावले है हमारा प्रधान मंत्री तो अभी भी कह रहा है कि भारत के सभी संसाधनों पर आपका ही हक़ है. हाँ उसका क्या जा रहा है, घर से उसे थोड़े ही देना पड़ रहा है. जिनके जवान बेटे सेना में कश्मीर में मर रहे है उनसे पुछो की हक़ क्या होता है.
यदि किसी भी एक असहान फरामोश की आत्मा जागी हो तो कृपया कर के मुझे एक ही उत्तर दे दे की जब धर्म के नाम पर बंगलादेश और पाकिस्तान देदिया गया था तो बचा हुआ देश किसका है ?

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