Friday, December 28, 2012

**बेटी चाहे कुंवारी रह जाना पर…….**


**बेटी चाहे कुंवारी रह जाना पर…….**

“शादी में बेटे की कीमत मांगते भारी,
यह पिता नहीं हैं, ये हैं व्यापारी !
ऐसे मंगतो के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !
औरत की कोख से ही पैदा हुए हैं आप,
फिर भी भ्रूण हत्या का करते जघन्य अपराध,
ऐसे अपराधियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !
संसद में बैठ नंगा विडियो चलाते,
घोटालों के सिर पर अपनी तोंद बढाते,
ऐसे बदमाशों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !

बलात्कारी हैं निर्लज्जता की हद ये तोडें,
बस चले इनका तो माँ-बहन को न छोडें,
ऐसे बलात्कारियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !

नशे में डूब करते जिन्दगी बरबाद,
न अपनो की शर्म न दूजों का लिहाज्,
ऐसे नशेडियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !


संत महात्मा बने फिरते, बडा तिलक लगाते,
गला उनका ही काटें जिन्हें गले लगाते,
ऐसे पापियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !”

**बेटी चाहे कुंवारी रह जाना पर…….**

:- श्री अशोक चक्रधर की एक गंभीर हास्य कविता जिसे पढकर एक लानत सी महसूस हुई अपने भारतीय होने पर उसे आप लोगो से साझा कर रही हूँ:

“शादी में बेटे की कीमत मांगते भारी,
यह पिता नहीं हैं, ये हैं व्यापारी !
ऐसे मंगतो के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !
औरत की कोख से ही पैदा हुए हैं आप,
फिर भी भ्रूण हत्या का करते जघन्य अपराध,
ऐसे अपराधियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !
संसद में बैठ नंगा विडियो चलाते,
घोटालों के सिर पर अपनी तोंद बढाते,
ऐसे बदमाशों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !

बलात्कारी हैं निर्लज्जता की हद ये तोडें,
बस चले इनका तो माँ-बहन को न छोडें,
ऐसे बलात्कारियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !

नशे में डूब करते जिन्दगी बरबाद,
न अपनो की शर्म न दूजों का लिहाज्,
ऐसे नशेडियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !


संत महात्मा बने फिरते, बडा तिलक लगाते,
गला उनका ही काटें जिन्हें गले लगाते,
ऐसे पापियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !”

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