Wednesday, December 26, 2012

पुनर्जन्म पर इस्लाम के विचार


पुनर्जन्म पर इस्लाम के विचार

यद्यपि कुरान और हदीसों में
आत्मा द्वारा कर्मों के फल भोगने ,और आत्मा के
अमर होने के बारे में जोभी लिखा है ,वह भारतीय
दर्शन से पूरी तरह मिलता जुलता है .लेकिन
आत्मा के पुनर्जन्म के बारे में केवल संकेत ही दिए गए
हैं .और न भारतीयों की तरह मुसलमानों ने पुनर्जन्म
के बारे में कोई खोज की है .क्योंकि खुद अल्लाह ने
मुसलमानों की अक्ल पर परदा डाल रखा है .
"जब भी तुम कुरान पढ़ना चाहते हो ,हम तुम्हारे
और कुरान के बीच में एक परदा डाल देते हैं ,जो तुम्हें
कुछ भी समझने से रोक देता है "
सूरा -बनी इस्रायेल 17 :45
मुसलमानों का अध्यात्म और आत्मा के बारे में ज्ञान
बहुत ही कम है ,वह हमेशा जिहाद में लगे रहते
थे .और यदि कोई आत्मज्ञान के बारे में प्रयत्न
भी करता था तो ,अल्ल्लाह उनकी अक्ल पर
पर्दा डाल देता था .इसीलिए मुसलमान आत्मा के
पुनर्जन्म के बारे ने बहुत कम जानते है .इस्लाम में
पुनर्जन्म (Rebirth ) को " ﺗﻨﺎﺳُﺦतनासुख
"कहा जाता है .इस्लाम के कई विद्वान् पुनर्जन्म के
सिद्धांत को मानते थे .उनमे एक महान सूफी संत
" ﻣﻮﻻﻧﺎ ﺟﻼﻝ ﺍﻟﺪّﻳﻦ ﺭﻭﻣﻲ
ﺑﻠﺨﻲमौलाना जलालुद्दीन रूमी बल्खी "ने
अपनी "मसनवी "में आत्मा के पुनर्जन्म के बारे में
जो लिखा है ,वह सौ प्रतिशत भगवद गीता के
सिद्धांतों से मिलता है .यद्यपि इसका कोई
पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता है
कि मौलाना रूमी कभी भारत में आये थे .लेकिन
उनकी किताब " ﻣﺜﻨﻮﻱमसनवी "इस्लाम जगत में
इतनी प्रसिद्ध और प्रमाणिक मानी जाती है
कि उसे दूसरी कुरान का दर्जा प्राप्त है .और
मसनवी के बारे में कहा जाता है कि
"ईं कुराने पाक हस्त दर ज़ुबाने फारसी ﺍﯾﮟ ﻗﺮﺍﻥِِ
ﭘﺎﮎ ﮨﺴﺖ ﺩﺭ ﺯﺑﺎﻥ ﻓﺎﺭﺳﯽ"अर्थात यह पवित्र
कुरान है जो फारसी भाषा में है .मसनवी में
लिखा है -
"तू अजां रोज़े कि दर हस्त आमदी
आतिश आब ओ ख़ाक ओ बादे बदी
ईं बकाया बर फनाये दीद ई
बर फनाए जिस्म चुन चस्पीद ई
हम चूँ सब्ज़ा बारहा रोईद अम
हफ्त सद हफ्ताद क़ालिब दीद अम "
अर्थात आज जो भी तेरा शरीर है ,वह
अग्नि ,जल ,पृथ्वी ,और वायु से बना हुआ है .और
किसी पिछले शरीर के नष्ट होने पर तुझे यह शरीर
मिला है .इसलिए इस शरीर से इतना मोह
क्यों करता है .मैं तो एक पौधे की तरह कई बार
उगता आया हुआ हूँ ,यहाँ तक मैंने सात सौ सत्तर
जन्म देख लिए है .
"बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानी तव चार्जुन
"गीता 4 :5
मेरा उद्देश्य इस्लाम
को सही ठहराना नहीं है ,बल्कि भारतीय
मनीषियों ने आत्मा के पुनर्जन्म के बारे में
जो भी सत्य प्रतिपादित किया है उसे
सही साबित करना है .जिसे आज भी कई वैज्ञानिक
सही मानाने लगे हैं .हर साल हरेक देश और हरेक
धर्म के लोगों में पुनर्जन्म के प्रमाण मिल रहे
हैं .इसके बारे में एक किताब "Born Again
"भी छप चुकी है .इसमे ऐसे कई उदहारण दिए गए
हैं ,जो शत प्रतिशत सही निकले हैं .चाहे मुसलमान
कुछ भी कहें .पुनर्जन्म एक अटल सत्य है .मुसलमान
इसका सिर्फ इसलिए विरोध करते हैं ,क्योंकि यह
सिद्धांत भारत के सभी धर्मों में मान्य है .और
मुसलमान हर भारतीय मान्यता के शत्रु है .
लेकिन जब हिन्दुओं को गुमराह करके उनको मुसलमान
बनाने बात आती है ,तो मुहम्मद जैसे
अत्याचारी को ,भगवान बुद्ध (मैत्रेय )का अवतार
बता देते हैं या कभी मुहम्मद को कल्कि और अंतिम
अवतार कह देते है .फिर भी यदि मुसलमानों ने
हमारे धर्मों से कुछ चुराकर अपने धर्म में शामिल
कर लिया है ,तो इस्लाम को सच्चा धर्म
नहीं नहीं कहा जा सकता है .फिर भी मुसलमान
अपने मतलब के लिए मुहम्मद
को किसी का भी अवतार बता देते हैं
यदि मुसलमान मुहमद को कल्कि का अवतार कहते
हैं ,तो वराह को मुहम्मद का अवतार
क्यों नहीं मान सकते ?

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